Thamma and Lokah Are Poles Apart” — Aditya Sarpotdar का हिंदी सिनेमा पर मौजूदा तुलना-बाज़ियों पर करारा पलटवार

  • निर्देशक Aditya Sarpotdar ने कहा कि Thamma और Lokah की तुलना “पूरी तरह ग़लत” है।
  • उनका कहना है कि लोग अक्सर हिंदी फिल्मों को नीचा दिखाने के लिए ऐसी तुलनाएँ करते हैं।


मुंबई — हॉरर-कॉमेडी-सुपरहीरो स्पेस में अपनी पहचान बना चुकी फिल्म “Thamma” के निर्देशक Aditya Sarpotdar ने हाल ही में एक साक्षात्कार में खुलकर कहा है कि हिंदी सिनेमा को अक्सर अनावश्यक व बेकार तुलनाओं का सामना करना पड़ता है। उन्होंने विशेष रूप से मलयालम की प्लेटफॉर्म-हिट Lokah Chapter 1: Chandra की तुलना में अपनी फिल्म Thamma को “पूर्णतः अलग दिशा” वाली बताई। 

नागरिकों-दर्शकों और नेटिज़ेंस के बीच यह ट्रेंड है कि जैसे ही कोई नया फिल्म वैकल्पिक शैली में लॉन्च होती है, उसकी तुलना उसी शैली की पिछले सफल फिल्मों से करने का चलन बढ़ गया है। Sarpotdar ने इसे “हिंदी इंडस्ट्री को नीचा दिखाने” की प्रवृत्ति का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा,

 

“मैं Lokah के बहुत बड़े फैन हूँ — यह फिल्म ‘बाहरी’ चीज थी, मुझे बहुत अच्छी लगी। लेकिन हमारी फिल्म यह नहीं करने आई कि बस वैंपायर हो जाएं और पीछे हॉरर-कॉमेडी बनाएँ… हमारा आँखें, हमारी दुनिया, हमें बनाते समय जिन विषयों को चुना है — वो Lokah से बहुत दूर है।” 

 

उन्होंने यह साफ-साफ कहा कि जहाँ Lokah ने अपनी कम-बजट-यूनिवर्स बनाने का काम किया, उनकी फिल्म Thamma कुछ और ही पैमाने पर और अलग दिशा में जाती है—इसलिए “पोल्स अपार्ट” कहना बहुत मामूली बात है। इसके साथ-ही-साथ उन्होंने यह विस्तार किया कि हिंदी फिल्म-निर्माताओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है—‘बड़े मार्केट’, ‘और भी बड़े ऑडियंस’, ‘B-C सेंटर’ तक पहुँचने की जिम्मेदारी, और फिर भी प्रायः जनता-समीक्षा में उन्हें बहुत-सी “बेहद नकारात्मक टिप्पणियाँ” मिलती हैं।

यह बयान इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है क्योंकि हिंदी सिनेमा की आलोचना अक्सर तुलना-माध्यम से होती रही है—नई फिल्मों की चर्चा पुराने हिट्स से जोड़कर, खासकर दक्षिण-भारतीय फिल्मों से। इस प्रकार के बयान यह सवाल उठाते हैं कि क्या हमें सब फिल्मों को एक ही फ्रेम में देखना चाहिए या हर फिल्म को उसकी अपनी दिशा-व शैली में आंका जाना चाहिए।

अब जब Thamma रिलीज़ हो चुकी है और Lokah ने पहले ही मलयालम-मार्क में सफलता पकड़ी है, तो Sarpotdar का यह कथन संकेत देता है कि निर्माता अपनी फिल्म की यूनिक पहचान बनाए रखना चाहते हैं और ट्रेंड-तुलनाओं से बाहर जाना चाहते हैं।