बिहार की राजनीति गर्म — वोटर्स का भरोसा जांच के दायरे में, बेरोज़गारी और मतदाता सूची विवाद चर्चित

पटना | भारत के पूर्वी राज्य Bihar में इस बार विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर है। 6 नवंबर और 11 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले मतदाता भावनाएँ, पार्टियों के घोषणापत्र और निर्वाचन-चर्चा पूरे राज्य में तेज़ी से फैल रही है।

मतदाता का भरोसा विच्छेद
प्रायोगिक सर्वेक्षणों और मीडिया रिपोर्टों के अनुरूप, मतदाताओं में भरोसा गिर रहा है। खास तौर पर युवा बेरोज़गारी (15-29 वर्ष) लगभग 9.9 % है — जो बिहार में गंभीर सामाजिक-आर्थिक चिन्ह है।
इसके अलावा, मतदाता सूची में कथित खामियों व प्रवासी बेरोकटोक वोटिंग की समस्या ने राज्य की राजनीतिक प्रतिष्ठा को हिलाया है।

राजनीतिक प्रस्ताव व बदलाव
मुख विपक्षी गठबंधन Rashtriya Janata Dal (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि अगर उनकी सरकार बनेगी तो वे वक्फ़ (संशोधन) कानून को निरस्त करने की दिशा में कदम उठाएँगे।
वहीं, सरकार पक्ष ने दलित-पिछड़ा वर्ग, युवाओं व महिलाओं के लिए बड़े वादे किए हैं और विकास-केंद्रित एजेंडा को प्रमुखता दी है।

क्षेत्रीय व सामाजिक कारक
बहुत-से प्रवासी मजदूरों के कारण राज्यों से बाहर रहने वाले पुरुषों के कारण महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ रहा है, जो चुनावी परिदृश्य को बदल रहा है।
साथ ही, मतदाता केंद्रों को अधिक सुलभ बनाने के लिए बूथ-वोटर संख्या कम की गई है, जिससे कतार-समस्या पर नियंत्रण पाने का प्रयास हुआ है।

चुनावी चुनौतियाँ

  • भरोसा बनाम निष्पक्षता: मतदाता सूची विवाद व भावनात्मक असंतोष विपक्ष के लिए अवसर प्रस्तुत कर रहा है।

  • बेरोज़गारी व विकास: युवाओं की दर पर प्रश्न उठ रहा है कि रोजगार-वादा कितना व्यवहारिक होगा।

  • समानता व न्याय: समाज के निष्पक्ष हिस्से को खोलने-वाले प्रस्ताव चुनावी मुद्‌दा बनते जा रहे हैं।

  • निगरानी व सुरक्षा: मतदान-पूर्व सुरक्षा-चेतना व बूथ-प्रबंधन महत्वपूर्ण कारक बने हैं।