नई दिल्ली | भारत के केंद्रीय बैंक, आरबीआई ने आज एक प्रस्तावित सर्कुलर जारी किया है जिसमें बैंकों की पुँजी बाजार में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष एक्सपोज़र तथा कॉर्पोरेट अधिग्रहण-वित्त पोषण पर नए सीमाएँ निर्धारित की गई हैं।
प्रस्ताव के मुताबिक, बैंकों की टियर-1 मूलधन का 20 % से अधिक प्रत्यक्ष एक्सपोज़र पुँजी बाजार एवं अधिग्रहण वित्त प्रदान करने पर नहीं होगी, जबकि 40 % से अधिक कुल एक्सपोज़र (फंड, गारंटी आदि सहित) नहीं हो सकती। अधिग्रहण-विशिष्ट फंडिंग टियर-1 मूलधन की 10 % तक सीमित रहेगी।
पिछले महीने ही बैंकिंग क्षेत्रों को अधिक ऋण देने की अनुमति दी गई थी, जिसमें आईपीओ खरीद तथा इक्विटी सिक्योरिटीज के विरुद्ध ऋण की सीमा बढ़ाई गई थी। इस प्रस्ताव के तहत बैंकों को सूचीबद्ध, लाभप्रद कंपनियों के अधिग्रहण के लिए वित्त पोषण राशि का 70 % तक ऋण देना संभव होगा, बशर्ते अधिग्रहीत कंपनी पर्याप्त नेट वर्थ व लाभप्रद हो।
आरबीआई ने यह भी सुझाव दिया है कि बैंकों द्वारा अधिग्रहण-वित्त के अंतर्गत दिए गए ऋणों के लिए सिर्फ लक्ष्य कंपनी के शेयरों को ही सुरक्षा के रूप में लिया जा सकता है। इसके साथ-साथ एनबीएफसी द्वारा इंफ्रा-वित्त पोषण में जोखिम-वेट मानदंडों को भी पुनर्संरचित करने का प्रस्ताव है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम बैंकिंग क्षेत्र में सुधार एवं स्थिरता की दिशा में मील का पत्थर हो सकता है, क्योंकि अधिग्रहण-फंडिंग व पुँजी बाजार निर्भरता पहले से बढ़ रही थी। हालांकि, बैंकों के लिए इस परिवर्तन का अर्थ होगा अधिक सतर्क प्रबंधन, उच्च सुरक्षा-मानदंड एवं पूँजी प्रबंधन।
धर्मेंद्र मिश्रा, बैंकिंग विशेषज्ञ ने कहा:
"आरबीआई का यह प्रस्ताव अधिग्रहण-उन्मुख बैंकिंग मॉडल को सीमित करते हुए बैंकिंग तनाव को कम करने की दिशा में है। यह संकेत करता है कि बैंकिंग क्षेत्र में अब सिर्फ विस्तार नहीं, बल्कि संतुलन व जोखिम-प्रबंधन महत्वपूर्ण होंगे।"
इस प्रस्ताव का अर्थ यह भी है कि आने वाले हफ्तों में बैंकों को अधिग्रहण-वित्त पोषण व पुँजी बाजार-दानवर्ती गतिविधियों में अपने जोखिम-परिसर का पुनर्मूल्यांकन करना पड़ेगा।